Thursday 1 March 2018

टूट के इतना चाह मुझ को,कि कोई हसरत फिर बाकी ना रहे....ज़माने की नज़रो से परे कोई हिसाब

फिर बाकी ना रहे...दौलत के ढेर पे ना मुझ को बिठाना,ख्वाईशो के जहान मे ना खुद को डुबोना...

दुनिया क्या सवाल उठाती है,कोई जवाब इन को ना देना....शिद्दत तेरे मेरे प्यार की इन को ना समझ

आए गी... वक़्त की रवानगी के साथ इन की आवाज़ भी खामोश हो जाए गी...आ मेरी आगोश मे,कि

फिर कोई हसरत बाकी ना रहे...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...