Monday 12 February 2018

आज वक़्त से पूछा हम ने,क्यूँ इतने मगरूर हो तुम....किसी जगह रुकते ही नहीं,किसी की बात क्यूँ

सुनते नहीं तुम.....खुशियाँ दे कर इंतिहा,फिर उन्ही को हम से क्यूँ छीन लेते हो तुम....ख़ुशी से जब

छलकती है यह आंखे,तो गमो को परोस कर इन्ही आँखों को क्यूँ बेतहाशा रुला देते हो तुम.....क्या

वजह है,ऐसा क्यूँ करते हो तुम..." मै अगर खुशियाँ ही खुशियाँ देता,तो मेरी कदर करता कौन..वक़्त

ही को रुला कर,दुसरो की खुशियाँ लूट लेता यही इंसान" जवाब दिया इसी वक़्त ने...सर झुकाया और

अदब से बोला हम ने,मगरूर तुम नहीं..घिनोने है हम इंसान.....


दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...