Sunday 11 February 2018

बेपरवाह रहने के लिए,जरुरी था कि खुद को सवारा जाए....यह मुस्कान फिर लौट कर ना जाए कभी,

जरुरी था कि ज़मीर पे बोझ ना डाला जाए....चुपके चुपके कोई दर्द का झोका हम को रुला ना जाए,

खुद को आईने मे सौ बार निहारा हम ने.....सादगी मे जीने के लिए कोई ना टोके हम को,हर फूल से

हौले हौले उस का हुस्न चुराया हम ने.....जीते जी रोशन रहे दुनिया मेरी,हर किसी के हर सवाल को

सिरे से नकार दिया हम ने....

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...