Friday 19 January 2018

ना कर शर्मिंदा मुझे दे कर दुलार इतना,ज़माना तकलीफ मे आ जाए गा---ना उठा नाज़ मेरे हसीन

नखरो के,मेरा बचपना लौट ना पाए गा----मेरी नींद के हसीन सपनो को अपनी ख़ामोशी का रंग दे

कर,इतना गुमान मुझ पे ना कर..तेरा दिल मुझी को सोचने पे मज़बूर हो जाए गा---शाखाओ से टूट

कर फूल फिर खिला नहीं करते,ना दुलार मुझ से इतना बड़ा कि मेरे खामोश होने से यक़ीनन तू बिखर

जाए गा -----

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...