Sunday 14 January 2018

वो फरिश्ता तो नहीं था,मगर मेरे लिए किसी फरिश्ते से कम ना था----यह जानते हुए कि चंद सिक्के

ही पास है मेरे,मेरी गरीबी को किसी शहंशाह की तरह माना उस ने----गुजर करने के लिए किसी और

की मोहताज़ हू,यह जान भी गले अपने से लगाया फिर भी उस ने----मेरी दी हर छोटी भेंट को,प्यार के

तराज़ू मे तोला उस ने और मन्नत मान कर सर से लगा लिया उस ने ----छलक गए कभी जो आंसू

मेरी इन आँखों से,हथेली अपनी पे ले कर आशीषो की झड़ी लगा दी मुझ पे---अब क्यों ना कहु कि

फरिश्ता हो तुम,कि सकूँ से जीने की वजह मुझे दें दी उस ने----

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...