Tuesday 7 November 2017

तुझ से गिला क्या करू,कोई शिकायत भी कैसे करू....हर कदम पे ले रही ज़िंदगी इम्तिहाँ मेरे....दर्द

को खुद मे समेटे हुए,लबो पे मुस्कराहट का लबादा ओढे हुए...कभी जिए इस के लिए तो कभी जिए 

उस  के लिए....सपने कुर्बान करते रहे, कभी किसी की ज़िद के लिए तो कभी किसी की ख़ुशी के लिए ...

खुद के लिए हम कब जिए...खुद के लिए हम कब हॅसे...ढूढ़ते रहे लम्हे अपने लिए...साँसों की डोर

टूटे कभी,इस से पहले खुदा को याद कर बस शुक्रिया कहे...सिर्फ शुक्रिया ही कहे......

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...