तुझ से गिला क्या करू,कोई शिकायत भी कैसे करू....हर कदम पे ले रही ज़िंदगी इम्तिहाँ मेरे....दर्द
को खुद मे समेटे हुए,लबो पे मुस्कराहट का लबादा ओढे हुए...कभी जिए इस के लिए तो कभी जिए
उस के लिए....सपने कुर्बान करते रहे, कभी किसी की ज़िद के लिए तो कभी किसी की ख़ुशी के लिए ...
खुद के लिए हम कब जिए...खुद के लिए हम कब हॅसे...ढूढ़ते रहे लम्हे अपने लिए...साँसों की डोर
टूटे कभी,इस से पहले खुदा को याद कर बस शुक्रिया कहे...सिर्फ शुक्रिया ही कहे......
को खुद मे समेटे हुए,लबो पे मुस्कराहट का लबादा ओढे हुए...कभी जिए इस के लिए तो कभी जिए
उस के लिए....सपने कुर्बान करते रहे, कभी किसी की ज़िद के लिए तो कभी किसी की ख़ुशी के लिए ...
खुद के लिए हम कब जिए...खुद के लिए हम कब हॅसे...ढूढ़ते रहे लम्हे अपने लिए...साँसों की डोर
टूटे कभी,इस से पहले खुदा को याद कर बस शुक्रिया कहे...सिर्फ शुक्रिया ही कहे......