Thursday 9 November 2017

हर छोटी बात पे अक्सर रो देते थे हम...बिना कोई खता किए ही उसे अपनी खता मान लेते थे हम

ज़माना करता रहा गुस्तखियाँ हम से,और नादानी से भरे उस को अपनी किस्मत मानते रहे हम

अक्सर अकेले मे बेवजह उन्ही दुखो को झेलते रहे हम,जो गुनाह कभी किए ही नहीं..उन के इलज़ाम

भी सहते रहे हम..जब थका दिया इन दुखो ने,तो बस बगावत पे ही उतर गए हम...आज यह आलम

है दुखो से पूछते है....कौन हो तुम ? तुम को छोड़ कर अपनी छोटी से दुनिया मे अब  बस गए है हम....

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...