Saturday 28 October 2017

बात नहीं तो फिर बात क्या है...खफा नहीं तो फिर इतनी ख़ामोशी क्यों है...पिघलते है ज़ज़्बात मेरे

नज़दीक आने से,यू अब फेरी है नज़र मुझ से...वजह क्या है....कहने के लिए और सुनने के लिए,

ज़ुबाँ ने कभी कुछ कहा था ही नहीं...सिर्फ एहसास ही थे पर अब वो एहसास कहाँ है...ज़िन्दगी को

अपनी ही शर्तो पे जीने वाले,इस कदर इसी ज़िन्दगी पे इतनी ख़ामोशी.....आखिर वजह क्या है....

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...