बात नहीं तो फिर बात क्या है...खफा नहीं तो फिर इतनी ख़ामोशी क्यों है...पिघलते है ज़ज़्बात मेरे
नज़दीक आने से,यू अब फेरी है नज़र मुझ से...वजह क्या है....कहने के लिए और सुनने के लिए,
ज़ुबाँ ने कभी कुछ कहा था ही नहीं...सिर्फ एहसास ही थे पर अब वो एहसास कहाँ है...ज़िन्दगी को
अपनी ही शर्तो पे जीने वाले,इस कदर इसी ज़िन्दगी पे इतनी ख़ामोशी.....आखिर वजह क्या है....
नज़दीक आने से,यू अब फेरी है नज़र मुझ से...वजह क्या है....कहने के लिए और सुनने के लिए,
ज़ुबाँ ने कभी कुछ कहा था ही नहीं...सिर्फ एहसास ही थे पर अब वो एहसास कहाँ है...ज़िन्दगी को
अपनी ही शर्तो पे जीने वाले,इस कदर इसी ज़िन्दगी पे इतनी ख़ामोशी.....आखिर वजह क्या है....