Monday 2 October 2017

काश यह तेरी खुदगर्ज़ी ही होती,तो यूँ हम परेशां ना होते-----तेरे अलविदा के लफ्ज़ो को दिल के मोड़ पे

ना लेते---हाथो मे तेरे हाथो का यूँ मज़बूती से पकड़ना,बेवजह धड़कनो को इलज़ाम ना देते----रफ्ता

रफ्ता तेरे चलते रुकते यह कदम,मेरी रूह को यूँ पशेमान ना करते----सलाम करे या तेरी राहो से दूर हो

जाए,मुंतज़र है तेरी हर बात पे हम....डूब जाए या किनारे को अपनी मंज़िल मान ले -----

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...