Sunday 29 October 2017

इन कागज़ के फूलो से अक्सर,महकती खुशबू क्यों महसूस होती है....बगीचे मे रखते है कदम,किसी

अनजानी ताकत को पास पाते है....कभी लगता है यह वहम हमारा होगा,भला इन बेजान फूलो ने

कभी खशबू बिखेरी है.....इस दुनिया मे जहा इंसान साथ नहीं देते,एक अनजानी ताकत क्यों साथ

होगी मेरे....बार बार जब किसी को महसूस करते है,फूलो से यही खुशबु खुद से लिपटी पाते है..यक़ीनन

खुदा के सज़दे मे शुक्रिया कहते जाते है.....
तुम जब भी मिलने आती हो माँ,मन को एक सकून दे जाती हो...यह बात और है कि इन आँखों को

बरसने पे मजबूर कर जाती हो...मेरा लाडला जो तुझ को सौपा मैंने,वो अभी भी तेरे साथ है...यह देख

कर एक गहरा सकून मुझे मिल जाता है....कही न कही तुम हर पल जुड़ी हो आज भी मुझ से,तेरी इन्ही

दुआओ ने दुनिया की बुरी नज़रो से बचाया है हम को....नमन कितना भी करू,कम लगता है,तुझे कितना

भी प्यार करू माँ ,कम लगता है....तेरा मेरा रिश्ता जन्मो जनम रहे,यही उम्मीद मुझे तेरे और पास ले आती है 

Saturday 28 October 2017

बात नहीं तो फिर बात क्या है...खफा नहीं तो फिर इतनी ख़ामोशी क्यों है...पिघलते है ज़ज़्बात मेरे

नज़दीक आने से,यू अब फेरी है नज़र मुझ से...वजह क्या है....कहने के लिए और सुनने के लिए,

ज़ुबाँ ने कभी कुछ कहा था ही नहीं...सिर्फ एहसास ही थे पर अब वो एहसास कहाँ है...ज़िन्दगी को

अपनी ही शर्तो पे जीने वाले,इस कदर इसी ज़िन्दगी पे इतनी ख़ामोशी.....आखिर वजह क्या है....

Thursday 26 October 2017

तेरे एहसास बदल गए...हमें चाहने का वो अंदाज़ भी बदल गया...टूट के चाहते है तुझे,इस चाहत का

वज़ूद क्यों तेरे ज़ेहन से गुम हो गया....हसीं और भी है इस ज़माने मे हमारे सिवा,तेरे इश्क की दास्तां

नई राह पे मोड़ ले जाए गी....नई मुहब्बत और साथी भी नया,हसरतो की एक कहानी फिर शुरू हो जाए

गी....हम खड़े है उसी मोड़ पे,जहा छोड़ा था तुम ने हमे....एहसास बदले है तेरे,चाहत तेरी ने दम तोड़ा

है....तेरी इबादत का दिया जो जलाया है हम ने,साँस टूटे गी मगर मुहब्बत ना बदल पाए गी......

Wednesday 25 October 2017

सुर्खियों मे रहा है हमारी कलम का जादू....लफ्ज़ निखरते है,अदाओ मे हस देते है और कभी पन्नो पे

यूं ही बिखर बिखर जाते है...लिखते है कभी दास्तां मुहब्बत की तो कभी दर्द को अपना कर बेवजह इन्ही

पन्नो मे सिमट जाते है....दुनिया दाद देती है लफ्ज़ो की अदायगी पे हम को,सलाम करती है पन्नो की

रोशनाई पे हम को...हम कोई आफताब नहीं,बस एक बाशिंदे है उस मालिक के...जिस ने दे दी कलम इस

हाथ मे और सर पे हाथ रख दिया हमारे हुनर के ख़िताब पे.....
धड़कने....जो हमेशा  तेरे मिलने पे,अक्सर बेलगाम हो जाया करती है....और यह जुबाँ.....बोलने की

जगह खामोश हो जाया करती है....पाँव जो हमेशा तेरी राह देखने के लिए,बेहताशा भागा करते है और

फिर तेरे आने पे जड़ हो जाया करते है....और यह जिस्म तेरे इश्क की ताकत से,तेरी ही रूह को खुद ही

समर्पित हो जाया करता है...पाक साफ़ रहे तेरा मेरा दामन,रूह से रूह का मिलन खुदा के दरबार मे बस

फ़ना हो जाया करता है...
हमारे हुस्न  का जादू उन पे चढ़ गया...वो मिले हम से और हमारे सज़दे मे,न जाने क्यों उन का सर

झुक गया....भीगी पलके हमारी यह देख कर,ऐसा क्या किया हम ने जो सीधा उतरे उन के  दिल के 

मुकाम पे ....राहे मुहब्बत की कभी आसां होती नहीं,बहुत छोटी छोटी हसरते हमारी जो कभी किसी

के दिल को चोट देती नहीं...हाथ थामा उस फ़रिश्ते ने और कहा तुम नूर हो मेरी ज़िन्दगी का,ऐसा सादा

हुस्न कभी देखा नहीं..यक़ीनन तेरे इसी हुस्न का जादू हम पे बस हावी हो गया...

Monday 23 October 2017

कही से महक आ रही है....कही से किसी की धड़कनो की आवाज़ सुन रही है...कभी लगता है दबे पाँव

किसी ने आहट की है...रूह ने कहा मुझ से,सज ले..सवर ले और कर ले सोलह श्रृंगार.....पायल की रुनझुन

से तुझे जीत लेना है अपने साजन का सारा प्यार.....हाथो के कंगना ले गे बलाए उस की,और तेरी मुस्कान

उड़ा दे गी होश तेरे मेहबूब के.....चाहत पाने के लिए जरुरी तो नहीं कि जश्न मनाया जाए,यह सिलसिला

है कुछ ऐसा कि कुछ कहा भी नहीं और सब सुन लिया हम ने.....

Saturday 21 October 2017

तूने जो दिया ज़िंदगी मुझे,वो क्यों मुझे रास नहीं आया....हर तरफ है धुआँ धुआँ,हर इंसान पाक साफ़

क्यों नहीं दिया...चाहतें है बहुत महगी,प्यार दुलार किसी को समझ क्यों नहीं आया....हर बात से बात

निकालने वाले,मन की अनमोल कथा को इन्हे पढ़ना क्यों नहीं आया...बूंद आंसू की क्या कहती है,दर्द

की परिभाषा इन की किताब मे शायद कभी कोई बयां कर ही नहीं पाया...कभी पत्थर,कभी दौलत तो

कभी बेजान सवालो का हिसाब खतम ना हो पाया..सच मे ज़िंदगी,यह सब मुझे बिलकुल रास नहीं आया...

Friday 20 October 2017

फूलो की वादियों मे जो धरा आज पाँव हम ने,ज़िन्दगी के खुशनुमा होने का एहसास ताज़ा हो गया---

गुजरे जब महकती खुशबू के पैगाम से,खुद के खूबसूरत होने का एहसास हो गया----वो कहते है कि

निकला ना करो सर्द मौसम मे,यह वादिया कभी कभी बहक भी जाती है----छू ले गी मेरे महबूब को

और इलज़ाम किसी के नाम कर बैठे गी----हम तो यह सुन कर भी मदहोश है,कि हमारे कदमो की

चाप भर से उन्हें हमारी फ़िक्र का एहसास तो हो गया---- 

Monday 16 October 2017

दोस्तों...हमारी हिन्दू संस्कृति मे त्योहारो का बहुत महत्व है..दीपावली राम जी के आगमन की ख़ुशी के लिए मनाई जाती है...क्या अब इन त्योहारो के मायने सच मे हमारी संस्कृति या भगवान के नियमो के अनुसार होते है..कदापि नहीं...अब यह त्योहार रुतबे और दौलत को मद्देनज़र रख कर निभाए जाते है...तोहफे भी दिए जाते है तो दूसरे इंसान के रुतबे के हिसाब से कि जो हम दे गे उस के बदले मे वो कितना लौटाए गा...लोग खूब खरीददारी कर रहे है,खुद को दुसरो से बेहतर जताने के लिए पैसो को बहाया जा रहा है....उस मे कही भी संस्कारो की छाप नज़र नहीं आती..आप दुकान पे है और एक गरीब भूखा इंसान गिड़गिड़ा कर आप से कह रहा है कि कुछ खिला दो..हम मे से कितने लोग होंगे जो उस गरीब को भरपेट बढ़िया सा खाना खिलाये गे ??या सम्मान से उस को पैसे ही दे दे गे ? दोस्तों..मेरी नज़र मे उस गरीब को भरपेट खाना खिलाना ही त्योहार मानना है..बजाय इस के कि उन लोगो को तोहफे बाटे जाये जहा सिर्फ और सिर्फ दिखवा भरा है..झूटी हसी मे जलन भरी है..एक दूसरे की बुराइओं मे वक़्त और त्योहार मनाया जाता है...दोस्तों..मेरी बातो से किसी को बुरा लगा हो तो माफ़ी चाहती हु ...आप जो मर्ज़ी कीजिये बस मेरी गुज़ारिश है आप सब से कि कम से कमएक गरीब को भरपेट भोजन जरूर खिलाये...इतना काफी है इस समाज को ऊपर  उठाने के लिए...शुभ रात्रि दोस्तों..शुभ कामनाये ...

Sunday 15 October 2017

हमारी शोख अदाओ पे उन का यह कहना कि उर्वशी बन कर मेरी जिंदगी मे आ जाओ अब----रातो की

नींद उड़ा चुकी,अब दिन का चैन उड़ाओ मत---तन्हा तन्हा रहते है,कुछ खुद से खफा खफा भी रहते है---

तेरे कदमो की चाप अक्सर दिल मेरा घायल कर जाती है----फूलो की खुशबू तेरे जिस्म की गंध याद दिला

जाती है---देखी अपनी सूरत जो आईने मे,खुद पे ही प्यार आ गया----यक़ीनन तेरी जिंदगी मे उर्वशी बन

आने का वक़्त भी आ गया-----

Saturday 14 October 2017

कह दिया ज़िन्दगी तुझ से,तेरी नियामतों के हम तो कायल हो गए....करते है शुक्रिया तुम को,कि लफ्ज़

अब और ज़ेहन मे ख़तम हो गए.....हर सुबह होती है जब,नई साँसों के आगाज़ से....खिल जाता है

तन-मन और इबादत मे जुड़ते है हाथ खुद-ब-खुद  विश्वास से.....बहुत है दर्द-बहुत परेशानिया भी है

लेकिन दाद देते है तुझे फिर भी ज़िन्दगी,देती है कुछ ऐसा खूबसूरत कि कहना पड़ता है..तेरी नियामतों

के हम तो कायल हो गए....

खुदा तो किसी इंसा मे फर्क नहीं करता....मुकम्मल बनाता है सभी को,इबादत का हक़ भी सब को देता है --यह तो इंसा है जो खुद को खुदा से जय्दा उम्दा मान लेता है....गुनाह की आड़ मे खुद को बेकसूर कहता है...ओह ...परवरदिगार मेरे .... रहम कर अपने इन बन्दों पे,दौलत और हवस की आग मे यह भूल जाता है कि आखिर जाना तो एक दिन तेरे ही पास है...दौलत के ढेर पे बैठ कर खुद को शहंशाह मानने लगता है...यहह अल्लाह...ना यहाँ कोई दोस्त है ना अपना कोई साथी है...तेरी दुनिया मे सिर्फ और सिर्फ धोखा है.....

Wednesday 11 October 2017

बांध ना बंधन मे मुझे,आसमाँ को छूना अभी बाकी है----कुछ खाव्हिशे अधूरी है अभी,कुछ रस्मे अदा

करनी अभी बाकी है---ख़ाली  ख़ाली है यह ज़िन्दगी अभी,कुछ रंग भरने अभी भी बाकी है----इंतज़ार की

हद होगी कितनी,तन्हाइयो मे इस का हिसाब करना बाकी है----सजने सवरने के दिन कभी तो आए गे

उस से पहले किसी की नज़र उतार ले,यह अहम् मौका आने को अभी तो बाकी है-----

Tuesday 10 October 2017

हज़ारो पर्दो मे छुपा लो खुद को बेशक,तेरे रूप की चांदनी फिर भी बिखर जाती है---सूरज करता है

सज़दा और चाँद....और चाँद तो बस तुझी को निहारा करता है---पाँव जहा जहा रख देती हो,फूल खुद

ही शाख से टूट कर तेरे कदमो मे बिखर जाते है---मेहँदी  हाथो मे सजाने के लिए,यह पत्ते खुद ब खुद

रंगत का नशा लिए तेरी हथेलियों पे मिटने चले आते है---जब रूप सवरता है तेरा,दीवाने तो खुद ही तेरी

और चले आते है----

Monday 9 October 2017

कहानी तेरी लिख दे या अपनी लिख ले..फर्क बहुत नहीं शायद---बेबाक ज़िन्दगी की असलियत रख

दे सब के सामने या पन्नो मे ढाले,फर्क बहुत नहीं शायद---कुछ राहें अनकही कुछ जानी पहचानी सी

छोड़ दे इन को या कदम इस पे रख दे,कोई फर्क नहीं अब शायद---- टुकड़े टुकड़े इस ज़िन्दगी को जिए

या बिंदास इन साँसों को खुल के ज़ी ले....फर्क बहुत है अब शायद----

Friday 6 October 2017

आ...तेरे इश्क मे डूब जाए,तेरी इन आँखों का सहारा लिए....मुद्दत हुई इस दिल को, तुझे आवारगी से

पुकारे हुए...ओह यह पलके है या बिछावन है मेरे दीदार का...कुछ तो बोल दीजिये हज़ूर कि दिन यह

कभी फिर ना आए गा,मुखातिब तो हो पर मेरी किस्मत का सितारा बुलंदी पे कब आए गा....दिल तो

शायद कभी खामोश हो जाए गा,पर धड़कने...वल्लाह.... फिर भी धड़कती रहे गी किसी और जिस्म का

सहारा लिए....
तू भूल जा ..कभी चाहा था मुझे-----तू भूल जा कि मुझी से मुझी को मांगा था कभी----यादो के

झुरमुट मे आज भी एक आवाज़ सुनाई देती है मुझे,फ़ना हो जाना है तेरे लिए जन्मो जनम खुदा की

खुदाई के लिए---आज भी अँगड़ाइयाँ लेती है ख्वाइशों की मचलती हुई बेताबियाँ,खुदा ग़वाह है उन

रोशन दिनों की गुफ्तगू का आज भी---नम हो जाती है यह पलके सब याद कर के---फिर भी तुझे वास्ता

देते है'''कि भूल जा तूने कभी चाहा था मुझे-----

Wednesday 4 October 2017

माँ ....  तुझे रुखसत हुए ज़माना बीत गया....कुछ यादो के साथ तेरा जीवन मुझ से दूर हो गया....

आज का दिन तेरा दुनिया से चले जाना,दिल को दर्द तकलीफ देता है.....पर तेरा एहसास,तेरी मौजूदगी

मेरे आस पास आज भी नज़र आता है....कोई नहीं,कोई भी नहीं इस एहसास को महसूस कर पाए गा...

दुनिया बेशक मुझे दीवाना समझ ले,पर तेरे घर मे तेरी ही आहटों का पैगाम मुझे कुछ कहने करने का

हुकम दे जाता है...वादा है माँ तुम से,तेरा हर हुकम सर आँखों पे...तेरे चरणों मे मेरा नमन...आज भी

मेरी साँसों पे तेरा ही पहरा है माँ....

Monday 2 October 2017

काश यह तेरी खुदगर्ज़ी ही होती,तो यूँ हम परेशां ना होते-----तेरे अलविदा के लफ्ज़ो को दिल के मोड़ पे

ना लेते---हाथो मे तेरे हाथो का यूँ मज़बूती से पकड़ना,बेवजह धड़कनो को इलज़ाम ना देते----रफ्ता

रफ्ता तेरे चलते रुकते यह कदम,मेरी रूह को यूँ पशेमान ना करते----सलाम करे या तेरी राहो से दूर हो

जाए,मुंतज़र है तेरी हर बात पे हम....डूब जाए या किनारे को अपनी मंज़िल मान ले -----

Sunday 1 October 2017

तेरी मुहब्बत की कशिश जो कम होगी,तेरी वफाओ की गिनती जो मुनासिब होगी----तेरे किए एहसानो

को जो कभी ज़मीर की तख्ती पे लिख पाए गे,तभी तो आस पास के नज़ारों पे नज़र उठा पाए गे----हाथ

जब भी उठाते है दुआओ के लिए,मन्नत मे तुझे ही मांगते है अपनी तक़दीर की रोशनाई के लिए---वो तो

तुम हो,जिस ने पलकों पे हम को बिठाया है---चांदनी की शीतल छाया मे हमारे हुस्न को निहारा है----हां

इस ज़मीर की तख्ती को मुकम्मल कर पाए,तभी तो एक और जन्म ले पाए गे -------

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...