वो मेहरबाँ क्यों हो गए हमारी नादानियों पे----खिलखिला कर उन्ही पे हंस दिए,वो फिर भी हम पे क्यों
कुर्बान हो गए----कुछ नहीं समझा उन्हें सिर्फ एक बेगाने से इंसान से,फिर क्यों हमारी ही तारीफ़ करते
करते वो एक मसीहा,एक भगवान बन गए---फ़िक्र नहीं हुई कि कौन है और क्यों नाज़ उठा रहे है हमारे
हम तो बस उम्र के अल्हड़पन पर ज़िन्दगी को बेफिक्र जीते रहे---और वो हमारी इन्ही शोख अदाओ पे
हमारी बलाए बस लेते रहे....लेते रहे.....
कुर्बान हो गए----कुछ नहीं समझा उन्हें सिर्फ एक बेगाने से इंसान से,फिर क्यों हमारी ही तारीफ़ करते
करते वो एक मसीहा,एक भगवान बन गए---फ़िक्र नहीं हुई कि कौन है और क्यों नाज़ उठा रहे है हमारे
हम तो बस उम्र के अल्हड़पन पर ज़िन्दगी को बेफिक्र जीते रहे---और वो हमारी इन्ही शोख अदाओ पे
हमारी बलाए बस लेते रहे....लेते रहे.....