Friday 22 September 2017

वो मेहरबाँ क्यों हो गए हमारी नादानियों पे----खिलखिला कर उन्ही पे हंस दिए,वो फिर भी हम पे क्यों

कुर्बान हो गए----कुछ नहीं समझा उन्हें सिर्फ एक बेगाने से इंसान से,फिर क्यों हमारी ही तारीफ़ करते

करते वो एक मसीहा,एक भगवान बन गए---फ़िक्र नहीं हुई कि कौन है और क्यों नाज़ उठा रहे है हमारे

हम तो बस उम्र के अल्हड़पन पर ज़िन्दगी को बेफिक्र जीते रहे---और वो हमारी इन्ही शोख अदाओ पे

हमारी बलाए बस लेते रहे....लेते रहे.....

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...