Tuesday 5 September 2017

लब थरथराए पर जुबां खामोश ही रह गई----पलके झुकाए बैठे रहे पर आंखे फिर भी सब कह गई ----

वो इम्तिहाँ लेते रहे हमारे प्यार का,ख़ामोशी से हम मगर उन की अदा पे बस मरते रहे-----इम्तिहाँ लेते

रहो गे कब तल्क इस प्यार का,यह वो शमा है जो जले गी जन्मो जनम बेहिसाब सा-----कहने को हम

खामोश है,कहने को वो भी खामोश है----जब मचले गी हसरते,खामोशिया दम तोड़ जाए गी----क्या कहे

होगा क्या,बस वादिया मुस्कुराती जाए गी-----


दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...