मुहब्बत तो मुहब्बत है...बदरा बरस जाए कितना या फिर बिजली खौफ बरसाए कितना----बहुत
भिगोया है इस बरखा ने हद की हद से परे...पर यह आंखे नहीं भीगी बरसते पानी के तले---कायम है
इन मे तेरे प्यार की वही हलकी सी खलिश,बस रही है साँसों मे अभी भी तेरी वफ़ा की वोही नमी---
शायद यह बरखा ले आए कभी सैलाब गहरा..ना बुझा है ना बुझे गा कभी तेरे मेरे प्यार का दीया---
कहे गे हर बार यही कि मुहब्बत तो मुहब्बत है--------..........----------
भिगोया है इस बरखा ने हद की हद से परे...पर यह आंखे नहीं भीगी बरसते पानी के तले---कायम है
इन मे तेरे प्यार की वही हलकी सी खलिश,बस रही है साँसों मे अभी भी तेरी वफ़ा की वोही नमी---
शायद यह बरखा ले आए कभी सैलाब गहरा..ना बुझा है ना बुझे गा कभी तेरे मेरे प्यार का दीया---
कहे गे हर बार यही कि मुहब्बत तो मुहब्बत है--------..........----------