रुनझुन रुनझुन की तरगों की तरह,नन्हे कदमो की ताल मे चलने की वो मासूम अदा....कभी रो दिए
तो कभी यूँ ही खिलखिला दिए...गोद से ना उतरने की वो ज़िद,जानभूझ कर ना सोने की वो ज़िद....
कभी चाँद को देख उसे मांग लेने का इकरार,जो मिला उस को फेंक देने का अधिकार....मिट मिट गए
उन्ही भोली सी गुस्ताखियों पे हम...नन्हे नन्हे से वो कदम आज,दुनिया से मुखतिब है....मासूम चेहरा
तो आज भी मगर,पर वो कदम बढ़ रहे है तरक्की की तरफ.....
तो कभी यूँ ही खिलखिला दिए...गोद से ना उतरने की वो ज़िद,जानभूझ कर ना सोने की वो ज़िद....
कभी चाँद को देख उसे मांग लेने का इकरार,जो मिला उस को फेंक देने का अधिकार....मिट मिट गए
उन्ही भोली सी गुस्ताखियों पे हम...नन्हे नन्हे से वो कदम आज,दुनिया से मुखतिब है....मासूम चेहरा
तो आज भी मगर,पर वो कदम बढ़ रहे है तरक्की की तरफ.....