Friday 11 August 2017

बेपरवाह बादल ने कहा,चल साथ मेरे....इन्ही झुरमुटों मे छिपा है कही चाँद शायद,आ ढूंढ उसे साथ मेरे...

दुप्पटे की आड़ मे कुछ समझ नहीं पाए,है चाँद किधर यह भी ना जान पाए...बदहवास हालत मे क्या कहे

इस बादल से,मुखातिब हो तो हो कैसे कि डर से बात कही बिगड़ ना जाए....ख़ामोशी से चलते चलते इक

हसीं मोड़ पे बादल ने कहा...इंतज़ार उस चाँद का अब क्या करना कि यह चाँद नया तो आज है पहलू मे

मेरे....

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...