Saturday 12 August 2017

कलम हाथ मे जब भी आती है,अनगिनित अल्फ़ाज़ लिखती जाती है....कभी ज़ज़्बात बिखरते है तो

कभी खुशबु बन के हवाओ मे बिखर जाते है....यू ही रो देती है यह आंखे बरबस,तो कभी इन्ही पन्नो पे

सैलाब छोड़ जाती है...मुस्कुराते है जब याद कर के किन्ही  खुशनुमा लम्हो को,हाथ लिखते है मगर

एहसास भी साथ साथ मुस्कुराते है...सोचते है कभी कभी....कमाल इस कलम का है या अल्फ़ाज़ इस

रूह से निकल कर आते है....

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...