कलम हाथ मे जब भी आती है,अनगिनित अल्फ़ाज़ लिखती जाती है....कभी ज़ज़्बात बिखरते है तो
कभी खुशबु बन के हवाओ मे बिखर जाते है....यू ही रो देती है यह आंखे बरबस,तो कभी इन्ही पन्नो पे
सैलाब छोड़ जाती है...मुस्कुराते है जब याद कर के किन्ही खुशनुमा लम्हो को,हाथ लिखते है मगर
एहसास भी साथ साथ मुस्कुराते है...सोचते है कभी कभी....कमाल इस कलम का है या अल्फ़ाज़ इस
रूह से निकल कर आते है....
कभी खुशबु बन के हवाओ मे बिखर जाते है....यू ही रो देती है यह आंखे बरबस,तो कभी इन्ही पन्नो पे
सैलाब छोड़ जाती है...मुस्कुराते है जब याद कर के किन्ही खुशनुमा लम्हो को,हाथ लिखते है मगर
एहसास भी साथ साथ मुस्कुराते है...सोचते है कभी कभी....कमाल इस कलम का है या अल्फ़ाज़ इस
रूह से निकल कर आते है....