तेरी चाहत से परे,गर कोई दुनिया होती तो दिल को समझा भी लेते....रंजिशे ना होती जो इस ज़माने मे,तो
हर मुनासिब समझौता भी कर लेते....आँखों से सैलाब बहने देते,मगर राहे मंज़िलो को निभा भी देते...
रिश्तो मे गर खार ना होती,यक़ीनन जान की बाज़ी भी लगा देते....अंगारो पे चलते चलते भी,पाँव तक
बचा लेते....अब आलम है कि ज़ज़्बातो को कुचल दिया है इन्ही पैरो के तले,दिल को बचा लिया है तेरी
ही चाहत मे बस.........रहते रहते...
हर मुनासिब समझौता भी कर लेते....आँखों से सैलाब बहने देते,मगर राहे मंज़िलो को निभा भी देते...
रिश्तो मे गर खार ना होती,यक़ीनन जान की बाज़ी भी लगा देते....अंगारो पे चलते चलते भी,पाँव तक
बचा लेते....अब आलम है कि ज़ज़्बातो को कुचल दिया है इन्ही पैरो के तले,दिल को बचा लिया है तेरी
ही चाहत मे बस.........रहते रहते...