दुनिया तेरे मेरे घर को मकान कहती है..ईंट पत्थर से बनी एक दुकान समझती है ..... जहा बस रही
ख्वाइशे मेरी,जहा चल रही यह साँसे भी मेरी...हर कोने मे माँ की परछाईया दिखती है...तेरे वज़ूद मे
मेरे वज़ूद का गुमा होता है....टूट के चाहा है तुझे,उस का असर हर जगह मिलता है...कोई माने या ना
माने,तेरी परछाई हु .....सदियों मे पैदा हुई,वही तेरी ही दुल्हन हु...
ख्वाइशे मेरी,जहा चल रही यह साँसे भी मेरी...हर कोने मे माँ की परछाईया दिखती है...तेरे वज़ूद मे
मेरे वज़ूद का गुमा होता है....टूट के चाहा है तुझे,उस का असर हर जगह मिलता है...कोई माने या ना
माने,तेरी परछाई हु .....सदियों मे पैदा हुई,वही तेरी ही दुल्हन हु...