Sunday 20 August 2017

तेरी हां सुनने के लिए बहुत दूर से आए है....दुनिया तेरी मासूम सूरत पे फ़िदा है,पर हम तो तेरी मासूम

रूह से गुफ्तगू करने आए है....रेत का घर बनाया था कभी,तुझ से मिलने से पहले इसी घर को हज़ारो बार

गिराया था कभी....क्या पता था किसी खूबसूरत मोड़ पे तुम से मुलाकात हो जाए गी....भरभरा कर फिर

से इस घर को गिराया है मैंने,तेरे पाँव सोने की चौखट पे पड़े...इसलिए आज तुझ को बुलाया है मैंने....

तेरी हां मे शामिल है जीने की वजह,हकीकत में .... इस घर मे तुझे लेने बहुत दूर से आए है......
हज़ारो दुआओ के मालिक है हम.....खुदा की नियामत है,उस के हर इशारे को समझ जाते है हम....करे

कितना शुक्रिया उस मालिक का,कि हर सांस भी लेते है तो दुआ निकलती है हर सांस के साथ....जब जब

बिखरे है किसी मोड़ पर,थामा है अपनी ताकत से हमें....लोग कहते है कि खुदा कभी नज़र नहीं आता

हम कहते है,कि नज़र साफ़ है तो हर शख्स मे मिल जाते है वो...

Saturday 19 August 2017

तेरे दर से जो निकले,याद आया अपना सब कुछ तो तेरे पास छोड़ आए है.....ज़हाँ का सामना कैसे कर

पाए गे कि अपनी ज़िन्दगी तो तेरे पास गिरवी रख आए है....खुद ही खुद से बेखबर है,अपनी साँसों का

हिसाब तेरे खाते मे जोड़ आए है....तेज़ कदमो से कोशिश की जो चलने की,पायल की छन छन तो तेरी

चौखट पे रख के आए है...सोचते है अब क्या है जो पास है मेरे,यह जिस्म.ओ.जान अब पूरी तरह तेरे

हवाले करने फिर से चले आए है....




बरसा तो बरसा आज इतना बादल कि तन मन को भिगो गया....गेसुओं को जो खोला,क्यों तेरा ईमान

डोल गया...बारिश की बूंदे देखी जो हमारे चेहरे पर,क्यों गुस्ताखियाँ तेरी नज़रो ने कर डाली....ना कर

शरारत इस मौसम मे कि अफसाना कोई बन जाए गा....लोग बदनाम करे गे तेरे मेरे नाम को,मुहब्बत

को कौन समझ पाए गा....कहर ढह रहा है खामोश सा यह समां,पलके जो झुकाई तेरा वज़ूद मेरे वज़ूद मे

समा गया.....

Friday 18 August 2017

रुनझुन रुनझुन की तरगों की तरह,नन्हे कदमो की ताल मे चलने की वो मासूम अदा....कभी रो दिए

तो कभी यूँ ही खिलखिला दिए...गोद से ना उतरने की वो ज़िद,जानभूझ कर ना सोने की वो ज़िद....

कभी चाँद को देख उसे मांग लेने का इकरार,जो मिला उस को फेंक देने का अधिकार....मिट मिट गए

उन्ही भोली सी गुस्ताखियों पे हम...नन्हे नन्हे से वो कदम आज,दुनिया से मुखतिब है....मासूम चेहरा

तो आज भी मगर,पर वो कदम बढ़ रहे है तरक्की की तरफ.....
दोस्तों....मेरी शायरी के हर रूप को पसंद करने का शुक्रिया....दर्द मे डूबी हुई,प्यार के दरिया मे लिपटी या फिर इबादत और पाक मुहब्बत के पन्नो को खोलती.....दोस्तों...मेरी शायरी किसी व्यकित विशेष के लिए नहीं होती...यह सिर्फ शायर की कल्पना के अनेको रूप को दर्शाती है....आप सभी का आभार ... शुक्रिया....शुभकामनाएं.....

Thursday 17 August 2017

आ लौट के कही से.....तेरे गले लग के ज़ार ज़ार रो ले आज....हर ख़ुशी अधूरी है तेरे बिना आज....तेरी

हर धरोधर को संभाल कर रखा है आज भी....हाथ मे बेशक कुछ भी नहीं,पर भरा है दामन दुआओ से

आज भी....तेरा हर सपना पूरा कर सके,इस कोशिश मे उम्र का एक बड़ा दौर निकल  गया....तेरे बिना

जो कर सके,जो जो वादे निभा सके..रूह के छालो पे उस के निशान है आज भी .....बची है अभी कुछ साँसे

एक अहम् वादा बचा हुआ है आज भी......

Wednesday 16 August 2017

खवाबो को तपिश देने के लिए,तेरा ख्याल ही काफी है....वफ़ा की राह पे चलने के लिए,तेरा नाम ही

काफी है....फासले तो रहे गे ज़िन्दगी भर,किसी मोड़ पे मिल सके यह सोचना ही काफी है....मुखातिब

तो हू तेरी बातो से,गुजरे हर लम्हा तेरे साथ यह गुजारिश करना अब बेमानी है....समंदर की लहरों मे

उतर जाए,इस से बेहतर  है किनारो से गुफ्तगू का नाता जोड़ लिया जाए...यही काफी है....

Monday 14 August 2017

बराबरी तेरे मेरे रिश्ते की कोई नहीं कर पाए गा......सात फेरो का बंधन है,जन्मो जनम चलता जाए गा

तूने ख़िताब दिया मुझे अपनी ज़िन्दगी के साथ चलने का.....तेरे मेरे प्यार के आगे अब कोई क्या कर

पाए गा....राहे मंज़िलो मे लोग मिलते है,गुफ्तगू के दायरे से बाहर ना चल पाते है.....अदब दिया हर

शख्स को,अपने संस्कारो को ना भूल पाए है...तेरी जगह तो बस तेरी है,इस को समझाने के लिए ना

वक़्त तेरे पास है,ना ही कभी वक़्त निकल पाए गा...

Sunday 13 August 2017

रूबरू तो नहीं हुए कभी आप से ,कभी होंगे भी तो कब होंगे....किस्मत किसी मोड़ पे क्या करती है

राहे मंज़िलो मे किस को किस से मिलाती है,खवाबो को मंज़िल देने के लिए कभी रूकती है तो कभी

खवाबो को खूबसूरत सा नाम दे जाती है...ठहराव भरा है आप की बातो मे,एक अदब मिला सालो बाद

किसी से पन्नो की किताबो मे....लोगो की नज़र मे हम क्या होंगे,आप की नज़र मे फरिश्ता है इस से

जय्दा और खुशनसीब हम कहाँ होंगे....

Saturday 12 August 2017

कलम हाथ मे जब भी आती है,अनगिनित अल्फ़ाज़ लिखती जाती है....कभी ज़ज़्बात बिखरते है तो

कभी खुशबु बन के हवाओ मे बिखर जाते है....यू ही रो देती है यह आंखे बरबस,तो कभी इन्ही पन्नो पे

सैलाब छोड़ जाती है...मुस्कुराते है जब याद कर के किन्ही  खुशनुमा लम्हो को,हाथ लिखते है मगर

एहसास भी साथ साथ मुस्कुराते है...सोचते है कभी कभी....कमाल इस कलम का है या अल्फ़ाज़ इस

रूह से निकल कर आते है....
सज गए तेरे लिए इस सादे से लिबास मे....कंगन नहीं,बिंदिया नहीं,पायल की खनक भी साथ नहीं

एक मुस्कान चेहरे पे,चमक आँखों मे प्यार की....जब छुहा तूने मुझे,प्यार के अहसास से...हज़ारो रंग

बिखर गए खामोश भरे अल्फ़ाज़ मे.....समझने के लिए अब कुछ बचा नहीं,बयां कर गए नैना चुपके

से तेरे साथ मे,महकते लम्हो की गुनगुनाती शाम मे...

Friday 11 August 2017

बेपरवाह बादल ने कहा,चल साथ मेरे....इन्ही झुरमुटों मे छिपा है कही चाँद शायद,आ ढूंढ उसे साथ मेरे...

दुप्पटे की आड़ मे कुछ समझ नहीं पाए,है चाँद किधर यह भी ना जान पाए...बदहवास हालत मे क्या कहे

इस बादल से,मुखातिब हो तो हो कैसे कि डर से बात कही बिगड़ ना जाए....ख़ामोशी से चलते चलते इक

हसीं मोड़ पे बादल ने कहा...इंतज़ार उस चाँद का अब क्या करना कि यह चाँद नया तो आज है पहलू मे

मेरे....

Thursday 10 August 2017

तेरी चाहत से परे,गर कोई दुनिया होती तो दिल को समझा भी लेते....रंजिशे ना होती जो इस ज़माने मे,तो

हर मुनासिब समझौता भी कर लेते....आँखों से सैलाब बहने देते,मगर राहे मंज़िलो को निभा भी देते...

रिश्तो मे गर खार ना होती,यक़ीनन जान की बाज़ी भी लगा देते....अंगारो पे चलते चलते भी,पाँव तक

बचा लेते....अब आलम है कि ज़ज़्बातो को कुचल दिया है इन्ही पैरो के तले,दिल को बचा लिया है तेरी

ही चाहत मे बस.........रहते रहते...
दुनिया तेरे मेरे घर को मकान कहती है..ईंट पत्थर से बनी एक दुकान समझती है ..... जहा बस रही

ख्वाइशे मेरी,जहा चल रही यह साँसे भी मेरी...हर कोने मे माँ की परछाईया दिखती है...तेरे वज़ूद मे

मेरे वज़ूद का गुमा होता है....टूट के चाहा है तुझे,उस का असर हर जगह मिलता है...कोई माने या ना

माने,तेरी परछाई हु .....सदियों मे पैदा हुई,वही तेरी ही दुल्हन हु...

Tuesday 8 August 2017

तुझे दिए वादे को निभाने के लिए ....आज भी उतना ही सवरते है जितना मुझे सवारने की ज़िद तेरी

होती थी---हर लम्हा लगू तेरी नवेली सी दुल्हन,नूरानी चेहरे पे ना देखू कही भी थोड़ी सी शिकन --- उस

बात का मान रखने के लिए उसी नूर को बचा रखा है आज भी मैंने---ज़न्नत से कभी जो देखे तू मुझे

तेरी रूह को सकूँ मिले,इस बात का ख्याल रखा है आज भी मैंने---

हवाओ को बहना ही है,समंदर को यूँ ही लहरों से लिपटना ही है----हमेशा की तरह यह चाँद,यह सूरज

निकलते  छिपते भी  रहे गे----कभी भूले से जो तेरा नाम कोई ले दे गा,बरसे गी यह आंखे और दिल रो

दे गा---साल दर साल जीते रहे इस इंतज़ार मे कि किस दिन तेरी रूह बुलाए गी अपने ज़हान मे मुझे

किस्मत की लकीरो मे साथ नहीं रहा फिर भी ज़िंदा है बस यही सोच कर,कि ताउम्र जीने के लिए यहाँ

कोई आता नहीं,तू ना भी बुलाए फिर भी खुदा का फरमान जारी तो होगा कभी----

Sunday 6 August 2017

आ..नज़र भर देख लू तुम को ,कि तारो की झुरमुट मे फिर गुम हो जाओ गे---भरी आँखों से ढूंढे गे फिर

तुम कब नज़र आओ गे---यह दिल है कि कभी भरता नहीं,रूह को रूह से ज़ोडते जाए गे----बेताबी का

नाम मुहब्बत नहीं,मुहब्बत नाम है विश्वास का---प्यार है हवा का झोका नहीं,सदियों का लम्बा इंतज़ार

है----जिस्म एक दिन फ़ना हो जाए गा,रूह के बंधन को तब कौन तोड़ पाए गा----
वज़ूद मे तेरे आज भी समाए है...तुझे खबर भी नहीं कि तेरे आशियाने मे,तेरे ही इंतज़ार मे पलके

बिछाए तैयार बैठे है....वही रूप,वही रंगत,वही मुस्कान कायम है...तूने लिया जो वादा कभी,निभाने

को आज भी तैयार है....इंतज़ार बेशक लम्बा सही,सदियों से जय्दा क्या होगा....जिस रंग मे  तूने चाहा

उसी रंग मे बस ढल गए...बहुत बहुत दूर तेरे साथ चलने के लिए,हम आज भी तैयार है.....
तारीख मुकर्रर नहीं करते कि खुद से खफा हो जाए गे---दिन तो गुजर जाए गा,पर रातो को जागना भारी

हो जाए गा---तेरी  बेबाक अदा..उफ़ यह  बोलती सी नज़र जुदा..कहते है ए सागर थाम ज़रा अपने सैलाब

की जगह----यह आंखे जो कहर ढाह जाए गी,तेरी गहराई को भी मात दे जाए गी---मांग ना मुझे,मुझ से

इतना कि तारीख मुकर्रर करने के लिए,खुद को तेरी हमनशीं करार कर जाए गे---

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...