Saturday 1 July 2017

कभी जो दे गई यह ज़िन्दगी दगा,दामन मे तो तेरे लौट आये गे---बहुत कुछ बहुत कुछ है बताने के

लिए,क्या छिपाए गे और क्या बोल पाए गे---बहुत दर्द मिला अपनों से यहाँ,बेगानो को क्या इलज़ाम

दे पाए गे---तुम होते साथ तो इल्ज़ामो के घेरे मे ना घिरे होते---इक शंहशाह की मुमताज़ बने, अपने

ताजमहल की रौनक होते--सितारों से भरा होता आज दामन हमारा,तेरी आगोश मे कही दूर बहुत दूर

ज़न्नत की सैर पे निकल जाते ----

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...