ना लगाओ काजल कि यह रात गहरा जाए गी ---ना बिखराओ गेसू कि रात शर्म से मर ही जाए गी ----
दुप्पट्टा लहराओ ना हवा मे इतना कि हवाएं रुख बदलना भूल जाए गी---ना मुस्कुराओ अब इतना यह
परियां कही की ना रह जाए गी---इतनी नज़ाकत से जो धर रही हो पाँव ज़मी पे इतना,होगा आसमां को
झुकना और यह ज़मी----यह ज़मी तो आप के कदमो मे कुर्बान हो जाए गी----
दुप्पट्टा लहराओ ना हवा मे इतना कि हवाएं रुख बदलना भूल जाए गी---ना मुस्कुराओ अब इतना यह
परियां कही की ना रह जाए गी---इतनी नज़ाकत से जो धर रही हो पाँव ज़मी पे इतना,होगा आसमां को
झुकना और यह ज़मी----यह ज़मी तो आप के कदमो मे कुर्बान हो जाए गी----