Wednesday 5 July 2017

बहुत चाहा ज़ख्मो को ज़ख़्म ही रहने दे,नासूर ना बनने पाए---अश्को को आखो मे ही पी जाए,बाहर

फिसलने ना दे---चाही बस थोड़ी सी ख़ुशी,थोड़ी सी हसी और जीने के लिए ज़िन्दगी रहे इबादत से

भरी---पर हम करते रहे इबादत,कि कही दिल का  गुबार जहाँ मे तबाही ना ला दे---तोड़ने वालो को

अब खुदा हाफिज,कि अब मकसद बदल चूका जीने के लिए--टुटा है यह गुबार और अश्क......यह तो

अब निकल चुके राहे-तबाही की तरफ----

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...