Thursday 27 July 2017

ज़ज़्बातो मे पिघलते हुए अल्फ़ाज़ तेरे,दामन से लिपटे तेरे बेखबर अंदाज़ मेरे----यूँ तो मुहब्बत तेरी

बेवफा नहीं,मेरी रूह की ताकत से जयदा कही खिदमते-वफ़ा है मेरी---जन्म बार बार लेते रहे,तुझी से

तुझ को पाने के लिए---कभी रोशन हुए,कभी तन्हा रहे.. कभी यूँ ही तुझे बस निहारते ही रहे---पाक

मुहब्बत के मायने तुझे समझा जाए गे,सितारों मे कही दूर किसी रोज़ छिप जाए गे---तेरी नज़रो मे

अपना अक्स ढूंढे गे,अल्फ़ाज़ तो फिर भी पिघले गे..मगर दामन मे तेरे नज़र नहीं आए गे----

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...