ज़ुबाँ के मासूम तारो पे,कभी लफ्ज़ सिखाए थे ओस की महकती बूंदो की तरह---अल्फ़ाज़ लिखाए
थे हमेशा किसी मंदिर की पूजा की तरह---पनाहो मे अपनी रखा था हमेशा दुनिया की नज़रो से दूर
कुरान नहीं,गीता नहीं,वाहेगुरु और तमाम धर्मो की बाते,फूलो की तरह बरसाई थी हर रोज़---अंदर
तो मेरे आज भी बसा है उन का धयान,कि साँसे जब भी जाए गी तो गिला नहीं होगा कि कभी छोड़ा
नहीं खुदा,भगवान और वाहेगुरु का नाम---
थे हमेशा किसी मंदिर की पूजा की तरह---पनाहो मे अपनी रखा था हमेशा दुनिया की नज़रो से दूर
कुरान नहीं,गीता नहीं,वाहेगुरु और तमाम धर्मो की बाते,फूलो की तरह बरसाई थी हर रोज़---अंदर
तो मेरे आज भी बसा है उन का धयान,कि साँसे जब भी जाए गी तो गिला नहीं होगा कि कभी छोड़ा
नहीं खुदा,भगवान और वाहेगुरु का नाम---