Tuesday 4 July 2017

ज़ुबाँ  के मासूम तारो पे,कभी लफ्ज़ सिखाए थे ओस की महकती बूंदो की तरह---अल्फ़ाज़ लिखाए

थे हमेशा किसी मंदिर की पूजा की तरह---पनाहो मे अपनी रखा था हमेशा दुनिया की नज़रो से दूर

कुरान नहीं,गीता नहीं,वाहेगुरु और तमाम धर्मो की बाते,फूलो की तरह बरसाई थी हर रोज़---अंदर

तो मेरे आज भी बसा है उन का धयान,कि साँसे जब भी जाए गी तो गिला नहीं होगा कि कभी छोड़ा

नहीं खुदा,भगवान और वाहेगुरु का नाम---

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...