आज खुद से बगावत कर रहे है--क्यों ताउम्र ज़ज़्बातो के महल बनाते रहे,बनाते रहे---दुनिया की बुरी
नज़रो से,अपना आशियाना बचाते रहे,बचाते रहे---कोई साथ चले न चले मेरे,बेखोफ हर राह को मंज़िल
तक पहुंचाते रहे,पहुंचाते रहे---आज खुद से ही शिकायत है इतनी कि क्यों इतनी ख़ामोशी से दिल की
तड़प को छुपाते रहे--यह दुनिया ही रास नहीं आई हम को,बची ज़िन्दगी को निभाने के लिए इन साँसों
को क्यों ज़िंदा रखा है--खुदा के पास अब जाने के लिए,ज़ज़्बातो के यह महल बना रहे है,सिर्फ अपने
इस खुदा के है लिए---
नज़रो से,अपना आशियाना बचाते रहे,बचाते रहे---कोई साथ चले न चले मेरे,बेखोफ हर राह को मंज़िल
तक पहुंचाते रहे,पहुंचाते रहे---आज खुद से ही शिकायत है इतनी कि क्यों इतनी ख़ामोशी से दिल की
तड़प को छुपाते रहे--यह दुनिया ही रास नहीं आई हम को,बची ज़िन्दगी को निभाने के लिए इन साँसों
को क्यों ज़िंदा रखा है--खुदा के पास अब जाने के लिए,ज़ज़्बातो के यह महल बना रहे है,सिर्फ अपने
इस खुदा के है लिए---