Saturday 24 June 2017

आज खुद से बगावत कर रहे है--क्यों ताउम्र ज़ज़्बातो के महल बनाते रहे,बनाते रहे---दुनिया की बुरी

नज़रो से,अपना आशियाना बचाते रहे,बचाते रहे---कोई साथ चले न चले मेरे,बेखोफ हर राह को मंज़िल

तक पहुंचाते रहे,पहुंचाते रहे---आज खुद से ही शिकायत है इतनी कि क्यों इतनी ख़ामोशी से दिल की

तड़प को छुपाते रहे--यह दुनिया ही रास नहीं आई हम को,बची ज़िन्दगी को निभाने के लिए इन साँसों

को क्यों ज़िंदा रखा है--खुदा के पास अब जाने के लिए,ज़ज़्बातो के यह महल बना रहे है,सिर्फ अपने

इस खुदा के है लिए---

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...