हा...आज भी आयात अधूरी है मेरी..तेरे बगैर पूरी कहा होगी यह ज़िन्दगी भी मेरी---रुख़्सत किया तो
क्या हुआ,दिल के शामियाने मे आज भी तस्वीर लगी है तेरी--ज़ुल्फो के घनेरे साये मे,तेरी उगंलियो की
हरकत सरसराहट देती है आज भी--लिखते लिखते कही क्यों बिखरते है लफ्ज़,मेरी किताब की किसी
एक उभरती नज़्म पे तेरी---मुस्कुरा दिए फिर ज़माने की हरकतों पे आज,कि खुदा को जवाब देने के
लिए सांसे तो ज़िंदा चल रही है अभी मेरी---
क्या हुआ,दिल के शामियाने मे आज भी तस्वीर लगी है तेरी--ज़ुल्फो के घनेरे साये मे,तेरी उगंलियो की
हरकत सरसराहट देती है आज भी--लिखते लिखते कही क्यों बिखरते है लफ्ज़,मेरी किताब की किसी
एक उभरती नज़्म पे तेरी---मुस्कुरा दिए फिर ज़माने की हरकतों पे आज,कि खुदा को जवाब देने के
लिए सांसे तो ज़िंदा चल रही है अभी मेरी---