Saturday 24 June 2017

हा...आज भी आयात अधूरी है मेरी..तेरे बगैर पूरी कहा होगी यह ज़िन्दगी भी मेरी---रुख़्सत किया तो

क्या हुआ,दिल के शामियाने मे आज भी तस्वीर लगी है तेरी--ज़ुल्फो के घनेरे साये मे,तेरी उगंलियो की

हरकत सरसराहट देती है आज भी--लिखते लिखते कही क्यों बिखरते है लफ्ज़,मेरी किताब की किसी

एक उभरती नज़्म पे तेरी---मुस्कुरा दिए फिर ज़माने की हरकतों पे आज,कि खुदा को जवाब देने के

लिए सांसे तो ज़िंदा चल रही है अभी मेरी---

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...