पलकों के शामियाने मे,तेरी मासूम सी वो कजरारी आंखे---इसी शामियाने के हटते ही,क्या कह गई
तेरी यह बोलती आंखे----बहुत सवाल करती है तेरी भोली आंखे,फिर उन्ही सवालो के जवाब मुझ से
पूछती है तेरी यही चुलबुली आंखे---कितनी ही ग़ज़ल लिख दू तेरे हुसन और तेरे नूरानी चेहरे पे,पर
फिर भी मेरी नज़र क्यों आ कर ठहर जाती है तेरी इन्ही कजरारी से आँखों पे---
तेरी यह बोलती आंखे----बहुत सवाल करती है तेरी भोली आंखे,फिर उन्ही सवालो के जवाब मुझ से
पूछती है तेरी यही चुलबुली आंखे---कितनी ही ग़ज़ल लिख दू तेरे हुसन और तेरे नूरानी चेहरे पे,पर
फिर भी मेरी नज़र क्यों आ कर ठहर जाती है तेरी इन्ही कजरारी से आँखों पे---