Friday 28 April 2017

खुला आसमां भी है,परिंदो के चहकने की इक वजह भी है---यह सुबह खुदा की नियामतों से भरी इक

दुआ ही तो है---यह ख़ामोशी,यह लय मे बहती हवा..कुछ न कह कर बहुत कुछ कहती भी तो है---तू

सुन ज़रा,पलट कर देख तो ज़रा कि ऐसी ख़ामोशी मे प्यार की इक रज़ा भी है---चल कर आए थे बहुत

दूर से हम,दामन मे चाहा प्यार तेरा,इस सुबह का इरादा कुछ ऐसा भी तो है---

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...