Sunday 19 March 2017

रूह ने रूह को पुकारा यू ऐसे..कि यह ज़िन्दगी फ़ना हो गई--जिस्मे-जान नहीं रहे बेशक,पर इबादते-पाक

मे दुआ क़बूल हो गई--- दुनिया की समझ से परे है तेरे मेरे प्यार का यह अनमोल सा रिश्ता---जो टूटा

है मगर खत्म नहीं हुआ अब तक---लोग तेरे मेरे घर को जानते है ईट-पत्थर का एक घर,पर वो एक मंज़र

है रूह से  रूह को मिलाने की जगह---बस इंतज़ार है इन सांसो के टूट जाने का,फिर तो रहना है वही जो

तेरे मेरे प्यार का आशियाना है---

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...