Saturday 14 January 2017

यह लब जो खुले लफ्ज़ कहने के लिए--तेरे लबो ने उन्हें क्यों थाम लिया---चूड़ियो की खनक मे जो

धड़का दिल..तेरे दिल ने उसे क्यों बहकने दिया---अल्फ़ाज़ पूरे भी ना कर पाए..तेरी ख़ामोशी ने हर बार

बाहो मे बस बांध लिया---इश्क मेहरबाँ क्यों है आज हम पे...हुस्न के चरचे मे तुझ से ये भी ना पूछ

पाए---खुल रहे है ये घने गेसू..अब बादलो की गरगराहट ने इन्हे क्यों संवरने दिया---

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...