Tuesday 17 January 2017

सुबह रौशन होने के लिए,रात के ढलने का इंतज़ार करती है--खिले खिले मौसम को और खुशगवार

करने के लिए,सूरज से तपन लेती है---चाँद तो चाँद है,फिर भी चांदनी के प्यार पे बसर करता है--

आसमाँ तू बहुत दूर तक फैला है मगर,सितारों के बिना फीका सा लगता है---हवाएं जब जब सर्द होती

है,सूरज के साथ के लिए तन्हा होती है---फूल खिलते है मगर,भवरें के लिए फिर भी बैचैन होते है---

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...