Wednesday 9 November 2016

झील से गहरी आँखों मे डूबने के लिए....इजाजत क्यों मांग रहे हो---पलकों के इस शामियाने पे क्यों

जीवन भर..साथ चलने का  वादा मांग रहे हो---यह ज़िस्म,यह ज़ान,सर से पाव तक महकती हुई वफ़ा

की पहचान ---जरुरी तो नहीं हर वादे पे लफ़्ज़ों की मोहर ही लगाए गे हम--कुछ अनकही बाते,कुछ

झुकी पलकों की सदाए,इशारा समझो---अब भी कहे गे यही..जानम इज़ाज़त क्यों मांग रहे हो---

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...