Sunday 27 November 2016

कहानी अपनी ज़िन्दगी की लिख कर...तेरे जहाँ मे लौट आये गे---जिए गे जब तलक,तेरी ही इबादत

मे खुद को देते जाये गे----क्या सही था,क्या गलत...अर्ज़ी बस तेरे ही दरबार मे लिखते जाये गे---ना

कोई अपना मिला,ना मिला शाहे-वफ़ा---तेरी ही इस दुनिया मे रंगों का एक बाजार दिखा---गर रहा

मे तेरा गुनाह-गार,तेरी हर सजा का हक़दार हू---तेरे पास आने से पहले,हर लफ्ज़ पन्नो पे लिख के

ज़िन्दगी का शुक्रगुजार हू------

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...