Wednesday 30 November 2016

देते रहे आवाज़..जाती रही नज़र जहा तक---ज़ुल्फो को बिखराया वहां तक..कि अँधेरा हो जाये जहा तक-

खामोश ज़िन्दगी को आज फिर कह रहे है..कि फ़िज़ा मे लौट आओ---बहारे कभी तो आए गी,यह उम्मीद

रखे गे आखिरी सांस तक---तेरे ही कदमो क़ी चाप आज भी सुनाई देती है मुझे..रातो क़ी तन्हाई आज भी

बुलाती ही तुझे---सजे गे सवरे गे,दुल्हन के लिबास मे करे गे इंतज़ार...साँसे इज़ाज़त दे गी जहा तक---

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...