Wednesday 23 November 2016

कही किसी की दुआ थी..तो कही कोई किसी का खवाब ----नज़र भर देखने के लिए तरसती रही कही

कोई ज़िन्दगी की उदास शाम ---पलके जो भीगी तो बस भीगती चली गई,कुछ अधूरे जज्बात तो कही

अधूरे से ख़यालात ----सोचा क़ि कभी पूछे किसी से,अधूरे खवाबो के साथ यह ज़िन्दगी है कैसी ---खुद

को जो टटोला तो जाना क़ि ज़िन्दगी किसी के प्यार के बिना----है कितनी अधूरी कितनी बेमानी -----

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...