Wednesday 26 October 2016

चलते चलते इस ज़मी पे तेरी...ए ख़ुदा मेरे...मेरा यह जिस्म तो थक आया....इस दुनिया मे देखे

जो नज़ारे ऐसे कि तेरी खुदाई से ही दिल भर आया....शिकवा नहीं,शिकायत भी तो नहीं...लेकिन

दुबारा फिर यहाँ न आने के लिए,तुझ से गुजारिश करने का मन हो आया....खूबसूरत होता जो यह

जहाँ तेरा,तो यक़ीनन रूह से साँसों को आज़ाद करने के लिए...हर रोज दुआ का दिल न किया होता...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...