Thursday 15 September 2016

 अपनी ज़िन्दगी की कहानी लिखते लिखते...उम्र कहाँ गुजर गई ----तेरी तलाश मे यूं भटकते भटकते

जवानी कहाँ निकल गई---बहुत दर्द है सीने मे मेरे..बहुत थकन है जिस्म मे मेरे---लाइलाज़ है मर्ज़ मेरा

तेरे वज़ूद के बिना जीवन का कोई अर्थ नहीं मेरा---लोग कहते है हम तबाही के उस मोड पे है...जहाँ

चलती है साँसे..दिल भी धड़कता है...पर तेरी राह देखते देखते यह आंखे ही बस पथरा गई है----

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...