Sunday 17 July 2016

बरसा आज इतना पानी--कहर बन कर बरसा,पननो पे मेरे--हजारो पननो को भिगोया..

सयाही को गहरी बूॅदो नेे अलविदा कह दिया--लफज जो ढले थे जजबात की तॅहाई मे...

जजबात जो लिखे थे खून की सयाही से--कही था दरद लिखा,कही मुहबबत की कहानी

थी--आगाह करते है ऐ बरसाती मौसम तुझ को,पननो को भिगोया है तुम ने...पर दिल

रूह इबाबत को ना मिटा पाओ गे..महबूब मेरा बसता है यहा,उस की जगह तुम कभी ना

ले पाओ गे---

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...