कलम जब भी लिखती है कागज के पननो पे..टुकडे दिलो के हजार कर देती है--सूखती
है सयाही जब तक..तब तक कितने दिलो को जोड भी देती है--हर पल बिखरेती है ना
जाने कितने ही अफसाने..हवाओ मे गुम रिशतो को ढूॅढ लाती है--पल पल खिलते हुए
सॅसार को बॅधन मे बाॅध जाती है--हा यह कलम जब भी लिखती है..पननो पे गजब ढा
जाती है---
है सयाही जब तक..तब तक कितने दिलो को जोड भी देती है--हर पल बिखरेती है ना
जाने कितने ही अफसाने..हवाओ मे गुम रिशतो को ढूॅढ लाती है--पल पल खिलते हुए
सॅसार को बॅधन मे बाॅध जाती है--हा यह कलम जब भी लिखती है..पननो पे गजब ढा
जाती है---