मेेरे लिए तेरी इक नजऱ ही काफी है..फिर तकरार की साजिश कैसी--सजदे करते है तेरेे
आने पे हर बार..फिर सजा पाने के लिए यह जुलम अब भारी है--ताकते-इशक से तेरे
बेहाल रहते है..फिर हुसनेे-वफा पे पहरे की आजमायशे कयू आई है--तडपते है मुहबबत
की आग मे दोनो..फिर खतावार कहलाने केे लिए हम ही कयू गुनहगारी है--
आने पे हर बार..फिर सजा पाने के लिए यह जुलम अब भारी है--ताकते-इशक से तेरे
बेहाल रहते है..फिर हुसनेे-वफा पे पहरे की आजमायशे कयू आई है--तडपते है मुहबबत
की आग मे दोनो..फिर खतावार कहलाने केे लिए हम ही कयू गुनहगारी है--