Friday 6 May 2016

रेत बन कर यह वकत,कब कहा निकल गया..तेरी मेरी जिॅदगी से--सपने रह गए अधूूरे,

मॅजिल रह गई पीछे..बहुत पीछे--चाहा था समॅदर को हथेलियो मे भरना,यह जाने बगैर

कि यह समॅदर कब कहा हुआ किस का--पलके है नम,आॅखे भीगी है तेरी यादो से जब

जब..फिर रेत पे पाॅव रख कर तपे है कब कहा और कितना-- 

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...