कॅगन मे बॅधी,झुमको मे सजी,पायल की छन छन मे बिखरती...यह मासूम सी मुहबबत
है मेरी...तेरे इशक की खामोशी मे कुरबान होती..दिल मे दबी तूफाॅ की चिॅगारी है यह
मेरी...चिराग जलतेे है या बुझते है..दिन और रात कब कहा रूकते है..खबर नही मुझ को
इस की..तेरी मुहबबत मे हू घायल,इसी तडप से सजी जिॅदगी है मेरी...
है मेरी...तेरे इशक की खामोशी मे कुरबान होती..दिल मे दबी तूफाॅ की चिॅगारी है यह
मेरी...चिराग जलतेे है या बुझते है..दिन और रात कब कहा रूकते है..खबर नही मुझ को
इस की..तेरी मुहबबत मे हू घायल,इसी तडप से सजी जिॅदगी है मेरी...