Friday 8 April 2016

ना जाने कया था उन आॅखो मे,कि हम पलको को झुकाना भूल गए--रौनक चेहरे की जो

देखी हम रौशन घर को करना ही भूल गए--ठगे से खडे रह गए चलने के अॅॅदाज पे फिदा

फिदा हो गए--मुड के जो देखा उस ने,जिसम अपने की थरथराहट से मदहोश हो गए--

मिलन की घडिया पास आने को है...पर हम तो अभी से उस के निगाहे-बान हो गए---

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...