बादशाह हो जिॅदगी के मेरे..कहने के लिए कुछ भी ना हो,पर मेरी खामोश तमननाओ के
मालिक हो तुम...गुफतगू जब भी की हैै इन आॅखो से मैैने,हर इशारे को बखूबी समझा है
तुम ने...रेत पे इक महल बनाया था कभी मैने,तुम साथ चले तो वो ही आशियाना बना
मेेरा...टुकडे टुकडे हुई थी यह जिॅॅदगी जो कभी,तुम जो मिले गुलिसता हुई साॅसे यह मेरी
मालिक हो तुम...गुफतगू जब भी की हैै इन आॅखो से मैैने,हर इशारे को बखूबी समझा है
तुम ने...रेत पे इक महल बनाया था कभी मैने,तुम साथ चले तो वो ही आशियाना बना
मेेरा...टुकडे टुकडे हुई थी यह जिॅॅदगी जो कभी,तुम जो मिले गुलिसता हुई साॅसे यह मेरी