मेरे पयार की इॅतिहा कब जानो गे..दिल मे छुपे इस दरद को कब जानो गे---सुलग रहे है
उस बुझती मशाल की तरह..तडप रहे है किसी पिॅजरे मे कैद पॅछी की तरह--आसमाॅ की
तरफ जो नजऱे उठातेे है..रेगिसतान की वादियो की तरह मुरझा जाते है--इबादत के रॅगो
मे सजी..तेरे सजदे मे झुकी इस पाक मुुहबबत को कब मानो गे--
उस बुझती मशाल की तरह..तडप रहे है किसी पिॅजरे मे कैद पॅछी की तरह--आसमाॅ की
तरफ जो नजऱे उठातेे है..रेगिसतान की वादियो की तरह मुरझा जाते है--इबादत के रॅगो
मे सजी..तेरे सजदे मे झुकी इस पाक मुुहबबत को कब मानो गे--