Wednesday 20 April 2016

मेरे पयार की इॅतिहा कब जानो गे..दिल मे छुपे इस दरद को कब जानो गे---सुलग रहे है

उस बुझती मशाल की तरह..तडप रहे है किसी पिॅजरे मे कैद पॅछी की तरह--आसमाॅ की

तरफ जो नजऱे उठातेे है..रेगिसतान की वादियो की तरह मुरझा जाते है--इबादत के रॅगो

मे सजी..तेरे सजदे मे झुकी इस पाक मुुहबबत को कब मानो गे--

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...