Thursday 3 March 2016

कलम जब जब भी चलती है..कागज केे इन पननो पे--हजारो दरदे बयाॅ कर जाती है--

लिखने का मकसद बेेशक कुछ ना हो..जबरन जजबातो को लफजो मे ढाल जाती हैै--

रॅजो गम की सयाही जो इस दिल पे छाई है..वो अकसर इन पननो को भिगो जाती है--

ना रहे गे जब हम इस दुनिया मे..इनही पननो की सयाही सब को खून के आॅसू रूला

जाए गी---

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...