खामोशी....बहुत कुछ बयाॅ कर जाती है..दूर रह कर भी--हर गुफतगू कर जाती है..दूूर
रह कर भी--चेहरे तो लोग अकसर पढा करते है..पर हम तो रूह की आवाज भी सुन लेते
है--वो पयार ही कया..जो लफजो का मोहताज हो--पयार तो वो शीशा है..जो इक छोटे से
निशाॅ को भी रूबरू करता है--वकत आता है..चला जाता है..रूह की दुनिया का यह पयार
अकसर फना होने के बाद ही नजऱ आता है--
रह कर भी--चेहरे तो लोग अकसर पढा करते है..पर हम तो रूह की आवाज भी सुन लेते
है--वो पयार ही कया..जो लफजो का मोहताज हो--पयार तो वो शीशा है..जो इक छोटे से
निशाॅ को भी रूबरू करता है--वकत आता है..चला जाता है..रूह की दुनिया का यह पयार
अकसर फना होने के बाद ही नजऱ आता है--