Wednesday 2 March 2016

खामोशी....बहुत कुछ बयाॅ कर जाती है..दूर रह कर भी--हर गुफतगू कर जाती है..दूूर

रह कर भी--चेहरे तो लोग अकसर पढा करते है..पर हम तो रूह की आवाज भी सुन लेते

है--वो पयार ही कया..जो लफजो का मोहताज हो--पयार तो वो शीशा है..जो इक छोटे से

निशाॅ को भी रूबरू करता है--वकत आता है..चला जाता है..रूह की दुनिया का यह पयार

अकसर फना होने के बाद ही नजऱ आता है--

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...