इॅतजाऱ अब इतना भी मत करवाना कि तुझ से फिर दूर हो जाए हम--दरद मे फिर
इतना ना डुबोना कि फिर से बिखर जाए ना हम--इतनी शिददत से जो चाहा है तुझे वो
किसी मननत से कम तो नही---खामोश है पर रोए है बहुत..कभी गुफतगू तो कर --ऐसा
ना हो कि बेमौसम की बरसात की तरह फिर से बरस जाए ना हम---
इतना ना डुबोना कि फिर से बिखर जाए ना हम--इतनी शिददत से जो चाहा है तुझे वो
किसी मननत से कम तो नही---खामोश है पर रोए है बहुत..कभी गुफतगू तो कर --ऐसा
ना हो कि बेमौसम की बरसात की तरह फिर से बरस जाए ना हम---