Sunday 14 February 2016

वो मुहबबत नही..सिरफ इक खुमारी थी---उलझी हुई बातो मे इक उलझी सी बेकरारी

थी..ना खवाबो मे बसी..ना मुहबबत ही बनी..दो बॅूद आॅॅसू जो बन के ढली..वो छोटी सी

इक कहानी थी--भूली हुुई दासताॅ बन कर जो खतम हुई..वो तेरी मेरी बस इक मेहरबानी

थी--ना रूह से जुडी ना साॅसो मे रूकी..बस बन के खता खतम हुई---

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...