Monday 22 February 2016

मुददतत बाद मिला कोई ऐसा..जो हमारे जीने का सबब बन गया---दिल के दऱवाजो को

खोला..आहिसता आहिसता उस के लिए---अरमान जगे हलके हलके मुहबबत की

तपिश के लिए--अललाह मेरे...सह नही पाए वो इलजाम-ए-बेवफाई का--दीवानगी के

आलम मे बदहवास हैै--पलको पे छाए सैलाब के बादल..दिल के नासूर बन गए----

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...