मुददतत बाद मिला कोई ऐसा..जो हमारे जीने का सबब बन गया---दिल के दऱवाजो को
खोला..आहिसता आहिसता उस के लिए---अरमान जगे हलके हलके मुहबबत की
तपिश के लिए--अललाह मेरे...सह नही पाए वो इलजाम-ए-बेवफाई का--दीवानगी के
आलम मे बदहवास हैै--पलको पे छाए सैलाब के बादल..दिल के नासूर बन गए----
खोला..आहिसता आहिसता उस के लिए---अरमान जगे हलके हलके मुहबबत की
तपिश के लिए--अललाह मेरे...सह नही पाए वो इलजाम-ए-बेवफाई का--दीवानगी के
आलम मे बदहवास हैै--पलको पे छाए सैलाब के बादल..दिल के नासूर बन गए----